Wednesday, April 22, 2015

Self creation Number xx




लिखना तो बहुत था पर कलम नहीं चली ,
मन में सोचा तो बहुत था पर जुबान नहीं चली ,
देखा तो उसे सबने था पर किसी के दिमाग में बत्ती नहीं जली ,
जलती भी कैसे आखिर पड़ोस के किराना स्टोर पे मेन्टोस जो नहीं मिली !!!!

self creation Number xx

सोचता हूँ क्यों मैं ऐसा हूँ ,
दर्द छुपाता हूँ सीने में और ख़ुशी छलकाता हूँ चेहरे पे ।
सोचता हूँ क्यों मैं ऐसा हूँ ,
रोता हूँ अकेले में और हँसता हूँ महफ़िल में ।
सोचता हूँ क्यों मैं ऐसा हूँ ,
देना चाहता हूँ मैं दुनिया को पर बटोरता हूँ खाली हाथों से ।
सोचता हूँ क्यों मैं ऐसा हूँ ,
कर्म करता नहीं हूँ और खफा रहता हूँ अपनी किस्मत से ।
सोचता हूँ क्यों मैं ऐसा हूँ ,
शुरू करता हूँ नयी शुरुआत और जुझता हूँ आगे निकलने के लिए उसी मोड़ से ।

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