Saturday, October 4, 2008

one more poem..

जब भी अकेलापन लगता है , दिल को मैं सम्हाल नही पांता
समझ में आता नही कुछ और काम कुछ भी हो नही पांता

मजाक उडाते लोगों से कुछ कह नही पांता
इन सिरफिरे लोगों को कैसे बताँउं , दिल को कोई समझ नही पाता..

वैसे तोह हैं बहुत से दोस्त और चाहने वाले,
पर जाने कहाँ दूर हो जाते हैं सब , जब मैं हंस नही पाता॥

कुछ यादें और कुछ बातें मैं भुला नही पाता,
जब भी अकेलापन लगता है , दिल को कोई समझ नही पाता...

दुनिया चलती रहती है, पर यह वक्त है जैसे थम सा जाता
न जाने क्यूँ यह इच्छा होती है, काश यह वक्त ही न आता ...

जब भी अकेलापन लगता है , दिल को मैं सम्हाल नही पांता
समझ में आता नही कुछ और काम कुछ भी हो नही पांता


-- Created by abhishek on 4 october 2008 10.40 am... :)






3 comments:

Pradeep Kumar Dewani said...

A very good poem my dear!!!!!!!!!
bas ek cheez kahna chaoonga zindagi asli fight hum sab ko akele hi ladni hoti hai !!!!!!!!!!!!!

Sapna Saxena said...

Awesome!!!

Sapna Saxena said...

Awesome