Monday, August 11, 2014

self-creations 3

छोटी सी हस्ती मेरी ,
मानो नदी मे हो कागज की एक कश्ती,
बीच पानी मे भी जैसे ढूँढ रही हो एक बस्ती !
कौन संगी कौन साथी,
कौन दोस्त और कौन नाती,
अचानक हवा चलती है और सब साथ छोड़ देते हैं,
किस से कहूं, क्या कहूं, जब अपने ही मुँह फेर लेते हैं ...

क्या करना कहाँ जाना कोई नही बताता
इस पानी में दो बूँद आंसूं भी गिरे तोह कौन है आँख उठाता

जी रहा हूँ बस ख़ुद का अस्तित्व बनाने के लिए

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